पहला सुख निरोगी काया। दूसरा सुख है अपनों का साया। पहला सुख निरोगी काया। दूसरा सुख है अपनों का साया।
मैं बहती शुष्क सी, कांतिहीन कुरूप माया , तुम मधुर रस से, मैं तिक्त अनुभूतियाँ ..... मैं बहती शुष्क सी, कांतिहीन कुरूप माया , तुम मधुर रस से, मैं तिक्त अनुभूतियाँ .....
इतना निष्ठुर मत बन जाओ, मेरे प्यारे अब इंसान बन जाओ। इतना निष्ठुर मत बन जाओ, मेरे प्यारे अब इंसान बन जाओ।
कुचली काया कली नाजुक सी कुचली काया कली नाजुक सी
तुमसे है ये जहां रोशन तुमसे है मेरे घर आंगन की। तुमसे है ये जहां रोशन तुमसे है मेरे घर आंगन की।
हर बीते लम्हे को बनाकर याद कुछ अपनों के लिए उनकी ज़िंदगी में। हर बीते लम्हे को बनाकर याद कुछ अपनों के लिए उनकी ज़िंदगी में।